यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः
उक्त वचन मनुस्मृति के हैं जो एक विवादास्पद ग्रंथ माना जाता है, फिर भी जिस पर हिंदू समाज के नियम-कानून कुछ हद तक आधारित हैं । और यह सत्य भी है -मैं हर चीज़ को अलग अलग दृष्टिकोण से देखता हूँ ज्योतिष शास्त्र के दृष्टिकोण से भी यह मनुस्मृति का वचन सत्य प्रतीत होता है -क्योंकि स्त्री यानि शुक्र गृह जो की स्त्री का करक होने के साथ साथ प्रेम -कामवासना -भोग विलास -मन की प्रस्सनता -नगद पैसा -वाहन-हीरे जवाहरात -सुंदरता पर भी प्रतिनिधित्व करता है यदि हम स्त्री का ही सम्मान नहीं करेंगे, अपमान करेंगे, स्त्री को पीड़ा देंगे तब शुक्र गृह का नकारात्मक प्रभाव जीवन में आना प्रारम्भ होगा !
व्यक्ति के जीवन में धन -प्रेम -संतान-वाहन इत्यादि यही सब उसके लिए स्वर्ग सामान है -भ्रस्पति भले ही संतान और धन का करक गृह है किन्तु बिना शुभ शुक्र के संतान और धन देने में असमर्थ ही होता है संतान पक्ष में भी शुक्र की एहम भूमिका है -इसलिए स्त्री का सम्मान और उसका प्रस्सन रहना महत्वपूर्ण है !
व्यक्ति जब उपरोक्त ग्रहो से सम्बंधित वस्तुओं और करक तत्वो के आभाव में होगा तब उसका जीवन घोर नरक के सामान ही हो जाना स्वाभाविक है और ऐसी स्तिथि में देवताओ का निवास और उनकी कृपा कहना संभव नहीं है
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा
उक्त वचन मनुस्मृति के हैं :-जिस कुल में पारिवारिक स्त्रियां दुर्व्यवहार के कारण शोक-संतप्त रहती हैं उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है, उसकी अवनति होने लगती है । इसके विपरीत जहां ऐसा नहीं होता है और स्त्रियां प्रसन्नचित्त रहती हैं, वह कुल प्रगति करता है ।
दोनों ही मनु स्मृति के वचन सत्य और सदा स्मरण में रखने योग्य है